कारवां
” यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया फलसफां जिन्दगी का,
पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया !! “
Author : Sujit Kumar
ISBN : 978-81-931221-1-2
Type : Paperback/Ebook
Language : Hindi
Type: Poetry
About This Book :
जिंदगी एक सफर ही तो है ; बचपन से जवानी और ढलती उम्र के साथ कितने पड़ाव को पार करते हुये हम अनवरत चलते रहते ! ऐसी ही मेरी जिंदगी का भी ये सफर जिसमें बचपन की किलकारियाँ भी है, गाँव की पंगडंडिया, खेत खलिहान चौपाल और उसमे बसी मेरी यादें ! वो माँ की दुलार पिताजी की फटकार, मास्टर जी की सीख, अपने शहर की गलियाँ, गंगा की तीर, होली के गीत, दिवाली के दीये, बहनों की राखी सब ही इस कारवां के साथी बनते गये ! रोजमर्रा की तलाश में भारत की राजधानी की ओर पलायन का दर्द भी महसूस हुआ तो सपने तराशने का हुनर भी सीखा हमने ! इस नए शहर में कारवां के साथी बने यहाँ की गुमनाम गलियां, निरीह रात, किसी की बात, जीवन में आगे बढ़ने का विश्वास !
इस कारवां में समाज का दर्द भी है ; ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े बच्चे की कसक भी है ; सुनामी की मार भी है तो निर्भया की चीत्कार भी है ! देश का स्वाभिमान भी है तो कहीं झूठा अभिमान भी है !
जीवन के उतार चढ़ाव ने इस कारवां में नये नए रंग भरे, सुनी दिवाली और होली ने कुछ रंग फीके भी किये ! साथी आये भी कुछ छूटे भी ; पर ये कारवां रुका नहीं थका नहीं ! इस कारवां के पंछी का अपना आसमां था और अपनी उड़ान !
ये कविता संग्रह बस इसी कारवां की अनुभूति मात्र है ! आप भी इसका साथी बनिए !
– सुजीत कुमार
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Final Author Note About Book :
” शब्द और कविता हमारी जिंदगी को बेहतर बनाते हमें एक नजरिया देते जीवन जीने का और जब तक कविता के शब्द हर किसी के मन
से ना जुड़े वो लेखनी सफल नहीं हो सकती| हिंदी की कोई चर्चित विधा लेखन नहीं है मेरे कविताओं में बस जो महसूस हुआ उसे शब्दों में ढालने का सतत प्रयास मात्र है| मेरी रचनायें एक कोशिश है अपने तरह से हिंदी भाषा में योगदान का ! ”
: – कारवां की भूमिका से ( सुजीत )
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सहृदय धन्यवाद !
सुजीत
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