अर्थविहीन – Meaningless

द्वन्द क्यों उठ गया आज, जैसे अतीत खाते गोते लम्हों में, दीवार पुरानी दरारे सीलन भरी, बोझिल सा हुआ इरादा सहने का, सुनी एक आवाज खुद से उठती ! ढाई …

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यारों बीते ना ये पल कभी !

हर मोड मे यूँ मिल जाते हो, कैसे माने चले गए थे कहीं ! ख़ामोशी का सबब ले बैठते जब हम, तो चुपके से गुन गुनाते हो कहीं ! मायूस …

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कुछ तलाशते रहे सभी !

वो कलह की दास्तान कहते रहे ! और कोलाहल में अनसुना करते सभी ! बातें फेहरिस्त लंबी हुई इतनी, जेहन में कुछ समाते ही नही सभी ! कोई मानता ही …

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रात के नभ चल तारों को देखा !

कई रातें लंबी बीती थी सदियों जैसी, ऐसी तंग गलियों में युग सा था चाँद को देखा, याद हमें एक आती है जब साँझ पसरते .. उमस सी सावन होती …

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