यूँ अखबार बंधे से परे रहते !

सीढियों पर पड़े अखबार बंधे से, रोज वही मुरझा जाते परे परे, शिकायत भरी नजर रहती, क्यों ना लाके बिखेर देते सिरहाने, हवायें जो पलट पलट दे उनके पन्ने, खोल …

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चौथे पहर की अधूरी बातें

कुछ अधूरी सी लगती है बात,देखता हूँ रात में लिपटी,चाँद की उस सूरत को,जो आज अधूरा ही आया था… सन्नाटे छूती जाती चुपके से,बावरे से बयार उठते है,और छु जाते …

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मसखरे की ख़ामोशी का क्या

मेरे द्वंद से तुम सब को खामोश होते देखा, देखा मैंने शिकन की रेखाओं को उभरते.. ना जता सका देखा तुझे चुप चाप कुछ सहते हुए ! क्यों किस उम्मीद …

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बस देखो ढूंडो यही कहीं होगी गांडीव परी – India’s Independence Day

हजारे हजार अब जलने दो, साख को मशालो में भरने दो, अब लड़ना है दुह: शासन से, मद में सत्ता ने पी मदिरा, देश चलाने का बस है झगड़ा ! …

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