मंदिर के सीढियों पर …

बीते रात के ख्वाब को एक दिन, मंदिर के सीढियों पर देखा । माथे पर कुमकुम का टीका, थाल अरहुल थे सब सजे । बीते रात के ख्वाब को, सीढियों …

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खामोशी भी उम्र भर निभायेगें ….

इक जैसे चेहरे कब से, ना भाव भंगिमा कुछ भी, पत्थर की मूरतें हो जैसे, सदियों से वैसे ही अब तक, शिकवे शिकन सजते रहे चेहरों पर, हमें इंसा होने …

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जमीं पर परा वो पत्ता ..

साख से कैसे छुट गया ये पत्ता, इतना भी पुराना तो रिश्ता नहीं, उम्र भी नहीं था रंग भी थे अभी भरे, दरख्त ने गिरा दिया इसे कैसे ! अनेकों …

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