इस चक्रव्यूह में क्यों राम परे ?

यह चक्रव्यूह था जिसको ना जाना, और राम ने शायद मन में क्या ठाना ! थे संशय में अर्जुन गांडीव धरे, इस चक्रव्यूह में क्यों राम परे ! हर राह …

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हाथों में गुब्बारे थे रंगीले !

कुछ यूँ हुआ … हाथों में गुब्बारे थे रंगीले सबके, और कुछ छुपा रखा था खंजर जैसा ! कदम जब जब बढ़े थे हमारे , राह क्यों बन गया था …

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चल दौड़ लगाये एक बार फिर, कहाँ गया तेरा हौसला ??

अनजाने में खुद ही खीच ली उम्मीदों की रेखा, अब पार जाना आसान सा नही हो रहा, खुद ही पंख पसारे उड़े थे इन आसमां में कभी, आज सहमे से …

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