This Poem reflects the writer’s emotions; how he defines his affections, he never sees his beloved one with his facets, His affection immerses in everything…
ये कविता एक लेखक के मनोभाव का प्रदर्शन है ; वो अपने स्नेह को परिभाषित करने की कोशिश करता है ! उसके लिए अपने प्रेम का कोई चेहरा नहीं है बल्कि प्रकृति के हर घटनाक्रम और चीजों में वो अपने प्रेम को व्याप्त पाता है !
~ तुम ~
धुप की दोपहर में,
आँखों में भरी नींद,
जैसा सुकून हो तुम ।
कच्ची मेढ़ों पर वो,
पैरों से चिन्हे बनाता,
वैसे हसीं हो तुम ।
लम्बे सफर से,
मंजिल तक पहुँचना,
जैसी तृप्ति हो तुम ।
मेले में कई चक्कर,
वो महँगा खिलौना,
जैसी उदासी हो तुम ।
मंदिर की सीढ़ी,
थाली में कुमकुम,
जैसे पाक हो तुम ।
माथें पर बिंदी,
लजाती सी दर्पण,
जैसी सादगी हो तुम ।
कोरों में काजल,
आँखें भरी सी,
ऐसी नजर हो तुम ।
भींगे से गमले,
खिले से पत्ते,
ऐसी सुबह हो तुम ।
कितनी व्यथा हो,
सुनते सदा हो,
जैसे सखा हो तुम ।
आँगन में छम छम,
बीता है बचपन,
जैसे सुता हो तुम ।
होते है जब दर्द कई,
दुख सुख सब भूल,
जैसे कोई दवा हो तुम ।
पुरानी बीती कई कहानी,
या अधूरी परी मेरी कविता,
ऐसी ही कोई किताब हो तुम !
कई लिबास है बुत के,
कई चेहरे भी यहाँ सब के,
बस एक अधूरी तलाश हो तुम !
न बंधन कुछ है,
बस एक अनाम रिश्तों सा,
दिल में अहसास हो तुम !
लिखता रहूँ अनवरत,
न शब्द थमता अब,
ऐसे जज्बात हो तुम !
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