एन इवनिंग इन मेट्रो – मेट्रोनामा !!

इक ऐसी ही शाम रोजमर्रा की .. नियत समय से मेट्रो में अपने गंतव्य की ओर जाने को आतुर और दुनिया भर की बातों की धुनी जमाए अपने कार्यस्थल के …

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कितना एकाकी है इस भागदौर में इंसान ?? – Thought with Night & Pen

कितना एकाकी है इस भागदौर में इंसान ; अनमने ढंग से सुबह में अपने आपको इस भीर के लिये तैयार करता हुआ ! महानगर की जिंदगी .. वक्त की कमी …

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ये भागती जिंदगी कहाँ ले जाती ?

फसल सी हिलती डुलती भीड़, सड़कों पर हो आती .. ये पुरानी खेतें .. एक जिंदा शहर बन जाती ! कितनी तंग गलियों से गुजरते गुजरते, दूर जा के ये …

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