
खुदगर्ज़ ….
कितना खुदगर्ज़ दिन है चुपचाप से रोज बीत जाता न शाम से कुछ कहता, और रात तो कबसे खामोश सी है । इन तीनों का कुछ झगड़ा सा है, कोई …
खुदगर्ज़ …. Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
कितना खुदगर्ज़ दिन है चुपचाप से रोज बीत जाता न शाम से कुछ कहता, और रात तो कबसे खामोश सी है । इन तीनों का कुछ झगड़ा सा है, कोई …
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