
दोपहर
दोपहर पर कितना कुछ है लिखने के लिये ~ कुछ मित्रों ने कहा ये दोपहर इतना उपेक्षित क्यों ; तो एक कविता “दोपहर” पर कोशिश करिये ; एक दोपहर , …
दोपहर Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
दोपहर पर कितना कुछ है लिखने के लिये ~ कुछ मित्रों ने कहा ये दोपहर इतना उपेक्षित क्यों ; तो एक कविता “दोपहर” पर कोशिश करिये ; एक दोपहर , …
दोपहर Read Moreशहर शहर का दोपहर भी अलग ही होता, अपने शहर में रोज दोपहर होता था, रोज शाम और रोज सुबह ! महानगर की घड़ी में जरुर कुछ समस्या सी लगती …
शहर शहर का दोपहर … Read More