हाथों से फिसल से गये …

किसी रोज की दूसरी बारिश थी,
बुँदे इस तरह कांचों से फिसल गये,
जैसे धुल गये अवसाद कितने पुराने,
लिपटते रहे बूंदें कांचों से कितने भी,
रिश्ते कच्चे थे हाथों से फिसल से गये !

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हर मुसाफिर गमगीन था अपने यादों में,
इस शहर की बारिश में सब बिसर से गये,
आसमाँ सिमट से गये, बादल भी बिखर से गये,
ना पूछा हवाओं से रुख किस ओर है जाना,
वो बहते रहे कुछ कहते रहे, ना साथ चले वो,
ना मंजिल सफर जाना, जिधर रुख किये चलते ही रह गये !

हम दूर कितने जा के जिंदगी जानेगें अब,
कितने ख्वाब टूटे, कितनी यादें उजर से गये,
सब रिश्ते कच्चे थे हाथों से फिसल से गये !

#SK

 

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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