प्रवास के परिंदें ..

migratory birds poem

migratory birds poemकई मौसम इक इक करके बीते ;
प्रवास के परिंदें इस बार नहीं लौटे !

सावन बीता शीत की रातें भी लौटी,
लौटी बातें और सारी यादें भी लौटी,
प्रवास के परिंदें इस बार नहीं लौटे !

पेड़ों की डालियाँ उचक उचक कर ताकती है ,
देखती रही इन्तेजार से राह बादल घिरने पर,
सोचती है आता होगा कोई बगिया में झूमने को,
इस बार कोई नहीं आया, कोई न लौटा !

तेरे कलरव बिना,
सुनी सुनी सी पड़ी है हर डालें,
कोई कहीं अजनबी सा मिलता है,
आस दिखती है फिर कोई लौटेगा !

प्रवासी परिंदे .. तुम्हें लौटना था फिर,
अधूरे प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए,
पलायन के विरह से मुक्ति के लिए !

क्यों लौट के नहीं आये ?
क्या नहीं रहा अब प्रेम हमसे ?
साथ बीते संग के कसक से सोचते,
वो अपने थे ही नहीं जो नहीं लौटे,
प्रवास के परिंदे इस बार नहीं लौटे ।

# Sujit

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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2 Comments on “प्रवास के परिंदें ..”

  1. बेहतरीन रचना, आखीर की पंक्तिया ज्यादा अच्छी लगी, धन्यवाद्

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