Initial Thought: I want to Occupy Myself in Such Way.. No Any Outward Distraction can influence my inner thoughts..
Genre: Hindi Poem / Poetry
Writer: Occasional Poet
Inspiration: Life, City, Old Memoirs
नकाबपोश रातों सी जिंदगी ..
ना संवरती ना बिखरती !
गम था, पर दिखना था संजीदा,
नकाबपोश जो भीड़ में खरे थे !
बिखेरी, थोरी सी एक बनाई हुई हँसी,
जैसे आंसू सूखे रेत के चेहरों में फँसी !
मुखोटे लगाये चेहरों ने घेरा मुझे,
ना राग कोई, ना द्वेष कोई …
ना घृणा हुई ना तृष्णा हुई …
पता नही क्या समझा मुझे ..
थमा गया तलवार कोई तो ढाल कोई !
समझा नही इस जीवन को मैंने,
पर जान गया मैं राज कई !
English Version of This Poem Coming Soon..
Sujit Kumar Lucky