गुरुदत्त – हिंदी सिनेमा का एक कवि …

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उसकी जिंदगी में कशमकश था, नाम शोहरत पैसा भी जिसके लिए बेमानी था । वो प्यासा रहा जिंदगी भर प्यार के लिए, रिश्तों के लिए, अपने जूनून को लोगों तक पहुँचाने के लिए । कहते है महान कलाकृति और कला को असली पहचान मौत के बाद ही  मिलती। जिसे हम नकार देते नजरों के सामने होते हुए भी नजर से ओझल होने पर वही चीज अनमोल हो जाती ।

एक ऐसे ही कलाकार जो कालजयी हो गया आज उसके ही याद में कुछ लम्हें उनसे जुड़े । वो नृत्य में पारंगत था, समीक्षक था, निर्देशक था, कवि था, गायक था, चित्रकार था, फोटोग्राफर था कला के प्रति दीवानगी रग रग में ! हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश दूरदर्शी कलाकार जो वक़्त से आगे की सोचता था, उसके लिए सिनेमा बस शोहरत और प्रसिद्धि पाने का जरिया नहीं था; सिनेमा को उसने अपना जीवन दिया था !

आज उनके जन्मदिवस पर, एक महानायक की याद में उनसे जुड़ी बातें ~ हम बात कर रहे गुरुदत्त की ; शायद आजकल के युवा ब्लैक एंड वाइट बॉयोस्कोप के इस महान कलाकार को नहीं जानते पर वो फिल्म जगत के लिए आदर्श रहें है ! वो क्यों थे अलग “उनकी अपनी अलग शैली थी, वो बहुत ही छोटी चीजों को भी अपने सिनेमा का अहम हिस्सा मानते थे, सहकलाकार हो या, गीत के बोल, लाइट, पर्दे, दृश्य संवाद, अभिनय सभी को वो जीवंत कर देते थे ! हिंदी क्लासिक सिनेमा को नया आयाम देने में उनका महत्वपूर्ण स्थान है !

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* कौन थे गुरुदत्त *

वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण गुरुदत्त के नाम से जाने गये ;  भारतीय फिल्म जगत के जाने माने डायरेक्टर, प्रोडूयसर, एक्टर ! अपने क्लासिक सिनेमा के लिए जाने गये ; ९ जुलाई १९२५ में जन्म ! कलकत्ता, बैंगलोर, अल्मोड़ा, पुणे, मुंबई के इर्द गिर्द बीता उनका जीवन ! जानी मानी गायिका गीता दत्त से विवाह और तीन बच्चे (अरुण, तरुण, नीना ) !

गुरुदत्त के साथी : अबरार अल्वी, राज खोसला, वीके मूर्ति, वहीदा रहमान, जॉनी वॉकर, रहमान, गीता दत्त, मोहम्मद रफ़ी, ओपी नैयर, एसडीबर्मन, हेमंत कुमार, देवा नन्द.
हम नहीं भूल सकते “साहिर लुधयानवी” और “कैफ़ी आज़मी” जिनके नज्मों और शब्दों ने गुरुदत्त के गानों को अमर कर दिया !

क्यों थे गुरुदत्त अलग
– उन्होंने कभी पैसे और नाम के लिए सिनेमा नहीं बनाया ; हमेशा कुछ नया करने का जोखिम लिया “कागज़ के फूल में अपने नाकामी को याद करके कहते ; जिंदगी में हम या तो सफल होते या असफल” !
–  उनके साथी कलाकार कहते वो बहुत मेहनती थे और अपने धुन के पक्के ; कोई स्टारडम हावी नहीं था ; वो हमेशा मुक़्क़मल कुछ नया करने के लिए सबको प्रेरित करते थे !
–  कागज़ के फूल में एक पेड़ के नीचे बारिश में अभिनेत्री को अपना रेन कोट देते हुए जो दृश्य था वहाँ सब कुछ ठहर जाता ; गुरुदत्त का फिल्मांकन इसे जीवंत कर देता ! इसी सिनेमा से अंधेरे में बस एक प्रकाश पुंज में डायरेक्टर और अभिनेत्री के बीच संवाद और गीत “वक़्त ने किये क्या हँसी सितम” का चित्रांकन अपने आप में मनमोहक और हृदयस्पर्शी है !
– मिस्टर एंड मिसेज ५५ में प्रीतम आन मिलो गाना – जैसे प्रेयसी अपने साजन को खींच रही !

*प्यासा*

उन्होंने अपने सिनेमा में अपनी जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को पूरी तरह दिखाने की कोशिश की है ; उनके चुने हुए गीत जैसे खुद एक कहानी को बयाँ करते थे ! हिंदी सिनेमा के ब्लैक एंड वाइट दौर की एक सिनेमा जिसे  “IMMORTAL क्लासिक” कहा जाता है “प्यासा” जिसे वो कशमकश नाम देना चाहते थे ! ये एक कवि की कहानी है उसके जीवन, सबंध, समाज में एक कला को नहीं समझ पाने का चित्रण इस सिनेमा को एक महान क्लासिक बनाता ! इसके गाने जो आपको एक नए दुनिया में ले जाते ! प्यासा का विजय ; बेरोजगार कवि अपने नज्मों को दुनिया के सामने रखना चाहते लेकिन उसे दुत्कार मिलती ! किस तरह वो छोटे चीजों को उकेरते एक दृश्य से पता चलता “टैक्सी पड़ाव पर एक आदमी कुली के लिए आवाज देता, विजय हाथ में डिग्री लिए कुछ सिक्कों के लिए उसका समान टैक्सी में रखता, बदले में वो आदमी एक खोटा सिक्का देता और कहते हुए जाता क्या जमाना देश में आ गया है पढ़े लिखे लोग कुली का काम करने लगे; व्वयस्था पर एक आघात किया इस छोटे दृश्य ने ! पुरे सिनेमा में कवि के जीवन उतार चढ़ाव का चित्रण लाजवाब है, संवेदना से भरे गीत है !

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* प्यार से चोट खाये एक कवि हृदय से निकलते गीत को सुनिए  # जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला ; हमने तो जब कलियाँ मांगी काँटों का हार मिला !
* समाज रिश्तों के खोखलेपन पर चोट करती ये धुन # ये दुनिया अगर मिल जाए भी तो क्या है ?  ये बस्ती है मुर्दापरस्तों की बस्ती !
* समाज में व्याप्त शोषण और बुराई पर मन को झकझोर के रख देती ये गीत # जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ है ?

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कितने रंग है इस ब्लैक एंड वाइट चलचित्र में .. शब्दों में नहीं ढाला जा सकता इसे !  इस सिनेमा के अंत में कवि कहता ” मैं दूर जा रहा हूँ, जहाँ से फिर दूर जाना न पड़े” !

*कागज़ के फूल*

लोग कहते है की ये फ़िल्म गुरुदत्त ने अपने जिंदगी पर बनायी; उनके अपने जीवन, पत्नी गीता दत्त और वहीदा रहमान से सबंधों के परिपेक्ष में उन्होंने कागज़ के फूल की कहानी गढ़ी । उनके दोस्तों ने ये फ़िल्म बनाने से उनको  मना किया लेकिन वो अपने धुन के पक्के थे । उन्होंने कहा ये फ़िल्म मैं अपने लिए बना रहा । भले ही ये बायोपिक न हो लेकिन उन्होंने अपने जीवन से मौत तक की पटकथा इस फ़िल्म में प्रदर्शित कर दी थी । ये फिल्म जो आज के महान क्लासिक फिल्मों में शुमार है उस समय गुरु दत्त के लिए त्रासदी ही रहीं और उन्होंने हमेशा के लिए डायरेक्शन छोड़ दिया !

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कागज़ के फूल के कुछ गाने जो आपके आत्मा में उत्तर जाते – “देखी जमाने की यारी; बिछड़े सभी बारी बारी ” ; वक़्त ने किया क्या हँसी सितम तुम रहे न तुम हम रहें न हम !

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*साहिब बीबी और ग़ुलाम*

बंगाल के पृष्टभूमि से जुड़ी ये सिनेमा भी समाज में आये बदलाव को दर्शाती, कैसे हवेली और जमींदारों की सम्पत्ति खत्म होती ! हवेली में रहने वालों लोगों की झूठी शान और हवेली के अंदर के कुछ रिश्तों को भी उजागर किया इस चलचित्र ने ! कुछ आलोचना का भी शिकार होना पड़ा गुरुदत्त को की एक औरत को शराब और किसी पराये पुरुष को हमदर्द मान के उसके साथ के पल को समाज ने सहज रूप से नहीं लिया ! आज ये आम बात हो सकती लेकिन गुरुदत्त ने उस समय आधुनिक समाज का चेहरा जब लोगों को दिखा दिया था लोगों ने इसकी आलोचना की ! ये कहानी घूमती जमींदार (रहमान), छोटी बहु(मीना कुमारी), भूतनाथ(गुरुदत्त), जाबा(वहीदा रहमान) के इर्द गिर्द.

इसका संगीत भी कर्णप्रिय था – भंवरा बड़ा नादान, साहिल के तरफ कश्ती ले चल, न जाओं सैयां चुरा के बैयाँ कसम तुम्हारी मैं रो पडूँगी, पिया ऐसा जिया में समाएं गयो रे !

गुरुदत्त गानों के चित्रण पर विशेष ध्यान देते थे और इनके संगीत चलचित्र को परिभाषित कर देते थे !

गुरुदत्त और जॉनी वॉकर

गुरुदत्त ने बहुत फिल्मों में जॉनी वॉकर को काम दिया ; और उन्होंने बस एक हास्य कलाकार की तरह उपेक्षित नहीं रखा उन्हें बल्कि उनके किरदार के लिए गीत और कहानी में भरपूर स्थान भी दिया !

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एक संगीत इसका सहज उदाहरण है ~  # जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी ; अभी अभी यहीं था किधर गया जी ! (जॉनी वॉकर और विनीता भट्ट) ;” प्यासा में सर जो तेरा चकराए दिल डूबा जाए हास्य विनोद से भरपूर है !

Hindi Cinema’s Timeless Treasures

Guru Dutt as Actor

  • Sanjh Aur Savera (1964)
  • Suhagan (1964)
  • Bahurani (1963)
  • Bharosa (1963)
  • Sahib Bibi Aur Ghulam (1962)
  • Sautela Bhai (1962)
  • Chaudhvin Ka Chand (1960)
  • Kaagaz Ke Phool (1959)
  • 12 O’Clock (1958)
  • Pyaasa (1957)
  • & Mrs. ’55 (1955)
  • Aar Paar (1954)
  • Baaz (1953)
  • Hum Ek Hain (1946)
  • Lakha Rani (1945)
  • Chand (1944)

Guru Dutt as Producer

  • Aar Paar (1954)
  • I.D. (1956)
  • Pyaasa (1957)
  • Gauri (1957) Incomplete
  • Kaagaz Ke Phool (1959)
  • Chaudhvin Ka Chand (1960)
  • Sahib Bibi Aur Ghulam (1962)
  • Baharein Phir Bhi Aayengi (1966)

Guru Dutt as Director

  • Kaagaz Ke Phool (1959)
  • Pyaasa (1957)
  • Sailaab (1956)
  • & Mrs. ’55 (1955)
  • Aar Paar (1954)
  • Baaz (1953)
  • Jaal (1952)
  • Baazi (1951)

एक कला प्रेमी को; अँधेरे से निकलता किरदार, मद्धम रौशनी, चुप्पी, ख़ामोशी से उठते चेहरे पर उपजे भाव सहज ही सबको आकर्षित करते । गुरुदत्त के किरदारों से आप सहज ही जुड़ जाते प्यासा का विजय, मिस्टर एंड मिसेज 55 का कार्टूनिस्ट प्रीतम, या कागज़ के फूल का डायरेक्टर सुरेश सिन्हा हो सब का जीवन चरित्र आपको अपने जीवन में हो रहे संघर्षों के करीब लगता । एक वृद्ध से लेके युवा तक, संघर्ष से लेके रोमांस तक, विषाद से लेके उत्साह तक, दोस्ती से लेके परिवार तक हर जगह गुरुदत्त के सिनेमा की पहुँच है ।

अपने अवसादों और कुछ निजी जिंदगी के घुटन से इस महान कलाकार ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया ! कुछ इन्होने अपने चलचित्र के तरह ही अपनी जिंदगी से रुक्सत किया ! एक गाना याद आ रहा “देखी जमाने की यारी; बिछड़े सभी बारी बारी” और वो प्यासा कलाकार अपने कशमकश से निकल कर वहाँ चला गया “जहाँ से फिर दूर जाना न पड़े” !

इस किताब से मिली प्रेरणा गुरुदत्त के जीवन को समझने में – फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध !

GuruDutt Biographies on YouTube (Guru Dutt Era Assorted by Me.)

Research, Compilation and Written By : Sujit Kumar

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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