पौ फट रही …

early morning poem

early morning poemबारिश के बाद सुबह की धुप को महसूस कीजये, पेड़ों के बीच से निकलती धुप की किरणें, मन को एक सुकून देती, एक असीम ऊर्जा लेके आती रोज नई सुबह ! एक लघु कविता इस संदर्भ में …

पौ फट रही ;
पेड़ों की ओट से निकलती हुई,
झुरमुटों में हो रही उजली पीली रौशनी ;
हवाओं में भर रही रागिनी ;
विहंग सब उन्माद में ;
मुंडेरों पर जमात में ;
एक दूसरें पर कूदे-फाने;
बारिशों से भींगे अब सूखे ;
फिर से धुप से खिल के आई सुबह ;
नींद का सब वहम है टुटा ;
जीवन फिर सब रंगों से लौटा ;
पौ फट रही ।

Poetry by : Sujit

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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