सूखे रिश्ते … Like A Dying Leaves

dry-plantsतुम थे तो कुछ लिख लेता था,
तुम फिर आते तो एक नज्म होती !

इस शहर से उस शहर जाने में,
तुम भूल आये वो पौधा ..
हर सुबह तुझसे मिलके जो जी लेते थे फिर जिंदगी,
इतने दिन सींच के क्यों तुमने मुँह मोड़ लिया,
धीरे धीरे पत्तियां पिली कुछ गिरती,
जैसे कोई बिखरता सा जा रहा रिश्ता,
न तुमने कुछ बोला .. और न उसने उम्मीद रखी,
अब चुप सा ही हो गया हूँ ..
जैसे वो गमला .. बंजर मिट्टियां उसमें,
और टहनियाँ जैसे .. एक ठूँठ सा खड़ा निष्प्राण सख्स !

क्या होता कुछ बूंदें तुम सींच देते,
अब बस .. ना देखना निकलकर फिर,
बेजार से गमलें में कुछ भी पड़ा नहीं है,
सूखे रिश्तें में अब कुछ भी बचा नहीं है !

#SK

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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3 Comments on “सूखे रिश्ते … Like A Dying Leaves”

  1. क्या होता कुछ बूंदें तुम सींच देते,
    अब बस .. ना देखना निकलकर फिर,
    बेजार से गमलें में कुछ भी पड़ा नहीं है,
    सूखे रिश्तें में अब कुछ भी बचा नहीं है !
    बहुत ही सुन्दर

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