रोजमर्रा ….

dream die

NDTV के एक रिपोर्ट से प्रेरित ~

रोज एक जैसी रोजमर्रा की जिंदगी, वही वक़्त से पहुँचने की रोज फ़िक्र तो वापस समय पर आने की कोशिश ! एक पाश में जकड़ा समय का पहिया, बस एक नियत कार्यों और गतिविधयों की लम्बी सुरंग जो जिंदगी के अंतिम मुहाने तक जाती ; उस ओर जब निकलते कुछ इन्तेजार करता “कुछ सवाल, कुछ लोग, कुछ व्यतीत जीवन, कुछ स्मृतियाँ, कुछ सफलतायें, कुछ विफलताएँ ! ये सलाह आसान भी नहीं और वास्तविक भी नहीं क्योंकि हम सब उसी पाश का हिस्सा है, इसी खींचा तान में बढ़ते जा रहे ! हाँ इन्हीं जटिलताओं के बीच जो कुछ करने का जोखिम उठाते वो इतिहास बनाते … विचारों के बवंडर में घिरना और खुद को स्थिर रख पाना जीवन जीने की एक कला ही है ! और हम जिंदगी के कलाकार, ऐसे सपनों और ख्वाहिशों का क्या ; “हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले” जिंदगी के सफरनामे को इन कुछ पंक्तियों के माध्यम से जीवन को देखिये तो अपने अंदर सोच और नजरिये में बदलाव को महसूस कर सकते !

पाश की एक कविता है :-
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बैठे बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी सी चुप्पी में जकड़े जाना बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होती

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
ना होना तड़प का
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

सबसे खतरनाक वो आँखें होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अन्धेपन कि भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके ज़िस्म के पूरब में चुभ जाए !
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Thoughts :

Insane Poet - Sujit Kumar

 

 

 

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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