दूर क्षितिज के एक छोड़ पर
नदी किनारे शाम ढलती हुई
ऊपर चाँद की दस्तक है ऐसे
जैसे ठिठक गया है वक़्त
रात और दिन के बीच कहीं
इस अनवरत समय चक्र को
क्यों किसी ने छेड़ा ।
क्यों रुका वक़्त का पहिया
क्यों थम सी गयी रफ्तार जीवन की ।
शायद हमने अनदेखा किया होगा
कभी इन ढलते शाम और सुबहों को
इन खूबसूरत लम्हों को नहीं समझा होगा
लौटना ही होगा हमें प्रकृति की ओर ।
#SK