हाथों में गुब्बारे थे रंगीले !
कुछ यूँ हुआ … हाथों में गुब्बारे थे रंगीले सबके, और कुछ छुपा रखा था खंजर जैसा ! कदम जब जब बढ़े थे हमारे , राह क्यों बन गया था …
हाथों में गुब्बारे थे रंगीले ! Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
कुछ यूँ हुआ … हाथों में गुब्बारे थे रंगीले सबके, और कुछ छुपा रखा था खंजर जैसा ! कदम जब जब बढ़े थे हमारे , राह क्यों बन गया था …
हाथों में गुब्बारे थे रंगीले ! Read Moreअनजाने में खुद ही खीच ली उम्मीदों की रेखा, अब पार जाना आसान सा नही हो रहा, खुद ही पंख पसारे उड़े थे इन आसमां में कभी, आज सहमे से …
चल दौड़ लगाये एक बार फिर, कहाँ गया तेरा हौसला ?? Read Moreपतझरों से उजरे उजरे दिन लगते , दुपहरी है अब लगती विकल सी ! वैसाख के इस रूखे दिन तले, कभी बचपन में सोचा करते थे ! और चुपके आहिस्ता …
वैसाखी दुपहरी ! Read Moreखामोश ही सही, पर रहों आसपास बनकर ! बिखर जाओ भले, रह जाओ एक अहसास बनकर ! दूर जाने से किसे कौन रोके, ठहर जाओ बस कुछ याद बनकर ! …
बैठे हो क्यों ख्वाब बन कर ? Read More“आज जन्मदिवस पर कुछ भाव अनायास मन में उठे ! इस कविता का संदर्भ : मैं गंगा किनारे बसे अंग प्रदेश से हूँ .. और अभी यमुना नदी के शहर …
अंग प्रदेश की भागीरथी Read Moreसृजन के शब्दों को सहारे नहीं मिलते ! वक्त की आपा धापी को सिरहाने नहीं मिलते ! कोशिश जब की ख्वाबो को चुराने की, रातों को नींद के बहाने नही …
वक्त की आपा धापी को सिरहाने नहीं मिलते ! Read More