चंदा को एक गीत बुलाती है कहती है – “चंदा रे चंदा रे कभी तो जमीं पर आ बैठेंगे बातें करेंगे”
इश्क़ को कभी चखा है ? “गुड से भी मीठा इश्क इश्क तो इमली से खट्टा इश्क इश्क है ” इस इश्क के बिना किया जीना यारों !
और दिल कभी टूटे तो ऐसा लगता “इस टूटे दिल की पीर सही न जाये” ! और इसी टूटे दिल से जब आह निकलती “दिल से रे ..” ;
मन मेरा जब सूफियाना हो जाता तब झूम के जाता “ख्वाजा मेरे ख्वाजा दिल में समा जा” … “पिया हाजी अली”
मेरी मिटटी जब मुझे बुलाती तो मन में गूँजता ” ये जो देश है तेरा, स्वदेश है तेरा” !
राधा कैसे न जले इसका भी कारण वो बताते है !
इश्क़ जैसे सजदा यार का और तब बस ये ही धुन निकलती ”
“वो यार है जो खुश्बू की तरह
जिसकी ज़ुबान उर्दू की तरह
मेरी शाम रात मेरी कायनात
वो यार मेरा सैंया सैंया ,
तावीज़ बनाके पहनूं उसे
आयात की तरह मिल जाए कहीं ”
और मेरा जिया जब जब जलता तब रात भर धुआँ उठता “जिया जले जां जले नैनो तले, रात भर धुआँ जले” !
सूखे से आँखों में मेघा को बरसाते “बरसों रे मेघा बरसों” !!
और सजनी को कहता ” तेरे बिना बेस्वादि बेस्वादि रतियाँ …. ओ हमदम बिन तेरे क्या है जीना” !
और मैं अपने धरती को नमन करता तो रोम रोम में ” माँ तुझे सलाम … वन्दे मातरम ” भर जाता !
कभी खुद से सवाल करता “रे कबीरा मान जा, रे फकीरा मान जा … कैसा तू है निर्मोही ? कैसी तेरी खुदगर्जी ? ”
अपने मितवा से पूछता “मेरे मन ये बता दे तूँ किस ओर चला है तूँ … मितवा कहे धड़कने तुझसे क्या ? ”
भटकते भटकते जब दूर कहीं निकल जाते तब उनको कोई बुलाता है “ओ नादान परिंदे घर आजा…..”
और फिर उड़ने को जी चाहता “मिटटी जैसे सपने कित्ता भी झारो फिर आ जाते है ..फिर से उड़ चला है तूँ” !
“जय हो” रहमान ! जिनके रग रग में संगीत बहता हो वो है रहमान !
जन्मदिन मुबारक !!