कब तक यूँ रहता यहाँ ऐसा ही !!

बिखरा बिखरा सा कुछ दिनों से, बड़ी मुश्किलों से मिलता था .. यादों का कुछ टुकड़ा ! कागजों पर लिखी कई नज्में, बिखरे दरख्तों पर दब सी गयी, पुराने पत्तों …

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आहटों पर ऐतबार नहीं हमें …

आहटों पर ऐतबार नहीं हमें, ये शहर इस कदर वक़्त का मारा है, मुलाकात की बस आरजू दिल में रह जाती है, ये मुकम्मल ना होती कभी ! कोशिश की …

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तलाशता हूँ वो कमी – Some Memoirs On Father’s Day !!

सतत प्रयत्न बेमानी सा है आज, अर्थहीन सफलता का बोझ कैसा, मेरा मकाँ पर अब जंजीरें और ताले है ! ईटों गारों से भी आगे कुछ लगा था, आपके सपनों …

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