A Sunday of Summer

अम्बर की ये तीखी किरणे,धरा लगी ऊष्मा को सहने,नदियाँ लगी उथले हो बहने ! शुष्क जमीं सब सूखा झरना,लगा पतझर में पत्तों का गिरना ! सड़क सुनी, गलियाँ भी खाली,इतवारी …

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कुँआ ….!

खाई खोद रहा वो इंसान जो कुछ पाना चाहता !आत्मविश्वास जैसे पानी मिल ही जायेगा !लक्ष्य तो मिलेगा ही ! आते जाते लोग कह ही देते, खाई है खाई ..खोद रहे …

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