यूँ अखबार बंधे से परे रहते !

सीढियों पर पड़े अखबार बंधे से, रोज वही मुरझा जाते परे परे, शिकायत भरी नजर रहती, क्यों ना लाके बिखेर देते सिरहाने, हवायें जो पलट पलट दे उनके पन्ने, खोल …

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चौथे पहर की अधूरी बातें

कुछ अधूरी सी लगती है बात,देखता हूँ रात में लिपटी,चाँद की उस सूरत को,जो आज अधूरा ही आया था… सन्नाटे छूती जाती चुपके से,बावरे से बयार उठते है,और छु जाते …

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