ये रात शर्त लगाये बैठे है नजरे बोझिल करने की.. और हम ख्वाब सजाने की बगावत कर बैठे है … (वक्त के खिलाफ ये कैसी कोशिश ! ! ) यूँ भागती कोलाहल जिंदगी मे .. कहाँ थी कोई ख़ामोशी.. हम छुपते रहे , पर वो वजह थी.. आखिर मुझे ढूंड ही लिया उसने ! ! […]
Month: November 2010
चलो अपने आँगन मे दिवाली मनाये इस बार !
चलो फिर दीप जलाये अपने आँगन मे इसबार, थोरे सुनी परी थी जो गलियां, उन्हें जगाए इस बार, धुल पर चुकी थी, दरख्तों पर उन्हें हटाये इस बार, चलो अपने आँगन मे दिवाली मनाये इस बार ! उमंगें थोरी धीमी जरुर पर गयी है, थमा के देखो किसी मायूस बचपन के हाथों मे फुलझरिया, भर […]