गणतंत्र दिवस – मैंने भी शांति नहीं मानी है …
महगाई पर माथे की शिकन ! हिंसा से विचलित मन, गणतंत्र पर जन गण मन ! हर बुराई के खिलाफ एक रण , मैंने भी शांति नहीं मानी है … …
गणतंत्र दिवस – मैंने भी शांति नहीं मानी है … Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
महगाई पर माथे की शिकन ! हिंसा से विचलित मन, गणतंत्र पर जन गण मन ! हर बुराई के खिलाफ एक रण , मैंने भी शांति नहीं मानी है … …
गणतंत्र दिवस – मैंने भी शांति नहीं मानी है … Read Moreआहिस्ता आहिस्ता आगोश में आती , थोरी कपकपाती हाथों को सहलाती , ठिठुरती सिहरती ये बातें कह जाती , जब उनकी हँसी मन ही मन गुदगुदाती , ओस की बूँदें …
जब सर्द की रातें है आती ! Read More