ये शहर !

वो कहते थे ये शहर है, ऐसा !
करीब से देखिये शायद जान जायेगें !

कब तक यूँ मुसाफिर रहते !
एक पराव एक आशियाँ तलाशा !

अब इस कदर बस गयी जेहन में,
हर गुमनाम सी गलियाँ यहाँ की,
मारे मारे फिरने में दिल्लगी सी हो गयी !

अनजाने चेहरों से हो रूबरू रोज,
एकबार देखता एकटक हर आकृतियों को,
कोई पुरानी खोयी पहचान सी लगती !
फिर रफ़्तार इस सड़क की रिश्ते भी जोड़ने कहाँ देती,
उमड़े भावों को पीछे छोड़ते, सब भीड़ सा बन जाते !

अब कोई चाह नही लौट जाने का, इन राहों से,
अपना सा हो ना हो, कुछ प्यार तो पनपा ही दिया,
इन गलियों में, सपने पाले और तोड़े अनेकों !
इन राहों में ही तो हुनर भी सीखा गिरकर संभल जाने का !

मेरे संग बातें बाटी यहाँ की आसमानों ने,
रातों ने सुने मेरे सारे किस्से नींद से जुदा हो के !

अब इन ऊँची इमारतों में वो बात नही दिख जाती,
हौसले बुलंद जब हुये, ये आडंबर झुकती नजर आयी,
वो डराती रौशनी अब धीमी पड़ती धुँधली हो आयी !
अब हर सुबह और शाम, खबर नही कब आई ना आई !

अब जान गए इस शहर को आहिस्ता तो सोचते,
रूबरू जो कहीं हुए तो, हर अक्स फिर टूटेगा !
किसी भीड़ में ना दिख जाना, शायद हाल बयाँ अब ना होगा !

:: – सुजीत

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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