यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर – Life fade as a Leaf

यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर ,
अब कोई खरखराहट भी नही है इनमे,
शायद ओस की बूंदों ने उनकी आँखों को
कुछ नम कर दिया हो जैसे …
बस खामोश से यूँ चुपचाप परे है ,
यादों के ये पत्ते …
जहन मे जरुर तैरती होगी बीती वो हरयाली,
हवायें जब छु जाती होगी सिहरन भरी ..
पर आज भी है वो इर्द गिर्द उन पेड़ों के ही ,
जिनसे कभी जुरा था यादों का बंधन ..
सन्नाटे मे उनकी ख़ामोशी कह रही हो जैसे,
अब लगाव नही , बस बिखराव है हर पल ,
यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर !
रचना : सुजीत कुमार लक्की ( Post Dedicated to friends ..).

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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