यादों की परछाई

यादों की परछाई उभरी !
मेरा मन था छु ले,
जा लिपट जाये, और पूछे कुछ सवाल !
मेरी चेतना से परे एक दीवार,
या थी भ्रम की कुछ लकीरे !
और थी क्षण प्रतिक्षण से उभरी स्मृति !
क्षणिक वियोग से उभरी तस्वीरे,
खो गयी जैसे टुटा एक स्वप्न,
और था वापस चेतना का समंदर !
सबकुछ आसपास पुनर्वत था, समेट नही पाया !
उन चेतनाओ से उभरी तस्वीरों को ..
बना नही पाया टूटे यादों के आईने !
बस यादों की एक परछाई उभरी !

सुजीत

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

View all posts by Sujit Kumar Lucky →