बंदिशें – An Urban Ode

अनजान अकेली सी है ये राहें सदियों से,
करवट भी नही ले सकती ऐसी बंदिशें !

ये बड़ी ऊँची ऊँची गगनचुम्बी महलें,
लगता सूखा लंबा बरगद खड़ा हो !

बेरंग सुख गयी है इसकी हर पत्तियाँ,
पर रंग रोगन से सजाया गया है इतना !

किर्त्रिम रोशनियों में नहलाकर इनको,
देखो कैसे हरे रंग खिलते है इन पर !

किसी दसवीं मंजिल पर रोता एक बच्चा,
उब गया है छोटे गलियारों में घूमते घूमते !

फिर बड़े कौतुहल से उचक के देखता नीचे,
सड़क पर खेलते पास के गलीं को बच्चों को !

हर कदम सिमटा संसार चंद कमरों में,
मन है जो कह रहा मुझमे कहाँ है बंदिशें !

हर रोज बस …

चल देते हर सुबह उन खेतों की ओर,
जहाँ आज बड़ी ऊँची ईमारतें बन आयी है !

## –
 सुजीत कुमार 

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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