दीवार के उस पार खड़ा अपना बचपन ! !

रोज का एक आम दिन ….
अभी थोरा ही झुका था सूरज उस सामने पेड़ की झुरमुट में ,
भागे भागे ऐसे जैसे चार पर टिकी घड़ी, अब रुकेगी नही ..
किताबो को बिस्तरों के सहारे,
यूँ लिटाया, जैसे गिरने गिरने पर हो ,
वो कोने में टिकाये रखा क्रिकेट का बल्ला ,
कल शाम से आस लगाये है चलने को ,
ओर सिरहाने पलंग के नीचे, तीन विकेट
शायद उसे वही रहने की आदत हो गयी थी ..
विकेट तीन ही क्यों ??
दूसरी तरफ हम ईट के टुकड़े से काम चलाते थे,
‘ संतोषम परम सुखम ‘ ये उक्ति शायद बचपन से साथ होने लगी थी ..
दोस्तों को दी आवाज़ , जैसे साकेंतिक गुप्त कोड सप्रेषित हुआ ..
खड़े थे उस दीवार के नीचे ,
जिसे रोज हमारी पार कूदने की हुरदंग ने हिला दिया था कुछ ,
कुछ ईटों की जड़े हिलने लगी थी, पर हमारी उमंगें नहीं !
उस पार का जहाँ हमारा होता था,
खाली पैर, खुरदुरे पथरीले सतह पर छिलते रहे थे ,
किसे थी फ़िक्र ..
तमतमतमाये, लाल चेहरे , भागते दौड़ते ऐसे ..
जैसे प्रतिद्वंदी पाकिस्तान हो ओर हम अपने आप को सचिन समझ बैठे !
अब कुछ अँधेरा सा घिरने लगा था ,
सूरज ने सपनी पनाह उस दूर खेतों के नीचे ले ली ..
कुछ थोरे अर्ध लाल बुलबुले से बचे थे उन खेतों के ऊपर ..
थके .. रुके .. कल की जिंदगी से अनजान ..चेहरे,
कुछ विवादित कहा सुनी , दोस्तों में ..
वापस ठिठके थे उसी दीवार के नीचे ..वापस जाने को ..
पर क्यों मैं पीछे सोच रहा था ,
उस दीवार के पार अब वापसी की राह नही ! !
एक एक करके सब कूदते रहे ..लौटते रहे …..
और राहे खत्म होती रही !
सुना अब उस दीवार के पार कोई नही जाता ..
अब चार पर घड़ी थमती नही, हाँ अब उसे चाय विराम मिल गया जो ! !
शायद दीवार के उस पार खड़ा अपना बचपन !
रचना : सुजीत कुमार लक्की

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

View all posts by Sujit Kumar Lucky →