इन राहों से कितने बिछड़े,
जहाँ हर सुबह महफ़िल बनती थी,
पूछते थे खबर हर यारों की,
तेरे रंग मेरे रंग बादलों सी सजती,
मन सपने बुनती संवरती..
और फिर धुँधली सी परती !
क्या में क्या तु, क्या कोसे किसको,
तेरी नियत मेरी फिदरत..
जाने कब कैसी किस्मत !
लौट आना मेरी गली कभी,
या मिल जाना किस मोड़ पर सभी !
चलो एक आयाम बनाते फिर..
अपनी अपनी आसमाँ का..
दूर दूर हर तारे होंगे,
कुछ मेरे कुछ तुम्हारे होंगे !
फिर सोचते कभी कभी ..?
खुश थे दुखो की जन्नत में सही,
बस …
वक्त को अपना कुनबा ही रास ना आया !