जब कभी दीवाली आती थी


तन कलरव मन हर्षित होता था ,
जब कभी दीवाली आती थी .

दौर दौर के छत के मुंडेरों पर,
दीप जलाना फूल सजाना हमे तो ,
बहुत ये भाती थी ,
जब कभी दीवाली आती थी .

पटाखों फुल्झारियो की लंबी लिस्ट ,
मेरे गुल्लक से बहुत भारी थी ,
बस यही सोच कर रह जाते थे,
रोकेट और अनार की अगले,
बरस की बारी थी,
जब कभी दीवाली आती थी .

परिदृश्य बदला … आज अपने घर से दुरी त्योहारों की उल्लास को कम कर रही ,

बस याद करते है उन बातों को ,
माँ की ममता बहुत ही न्यारी थी ,
दिन गुजरे है और कुछ गुजरेंगे ,
बस अपनी तो दीवाली की यही तैयारी थी,
जब कभी दीवाली आती थी ।

रचना : सुजीत कुमार लक्कीं

आप सब धन यश वैभव से परिपूर्ण हो दीवाली की हार्दिक बधाई ! ! !

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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