क्या है !

देखा हर नब्ज जिंदगी का ..
पूछ बैठा इरादा क्या है !
जब समझ बैठा कोई परछाई ..
तब देखा मेरा साया क्या है !
रह रह झलक जाता जब कोई ..
देखे न दिखा नजारा क्या है !
खामोश दीखते हर राहों पर जब ..
फिर पूछते तेरा वादा क्या है !
मुस्कुराहटो को छिपा रखा सिरहाने ..
तो समझा तेरा बहाना क्या है !
फासले बढे तो बढे चुप थे ..
रो परे जब पूछा ठिकाना क्या है !
रचना : सुजीत कुमार लक्की

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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