उलझते सुलझते बातें जिंदगी के .. My LifeStream -2

ये रात शर्त लगाये बैठे है नजरे बोझिल करने की..
और हम ख्वाब सजाने की बगावत कर बैठे है …

(वक्त के खिलाफ ये कैसी कोशिश ! ! )

यूँ भागती कोलाहल जिंदगी मे ..
कहाँ थी कोई ख़ामोशी..
हम छुपते रहे , पर वो वजह थी..
आखिर मुझे ढूंड ही लिया उसने ! !

(ये कैसी ख़ामोशी. थी ! ! )

राह बंदिशे से निकल कर चलने दे एक कारवां …
वक्त की हाथो न रुक जाये एक खिलता हुआ जहाँ ..

(रोको न इसे खिलने से ! ! )

शिकन न दिखे इन चेहरों मे कभी …
चाहे सजदे मे झुके रहे हम यूँ ही तेरे दर पर ..

(कोई गम के निशा न हो ! ! )

अनजाने में अपनापन दिख गया ..
आपकी सादगी में ये नजर झुक गया ..
जब भी कभी हुआ परेशां , आपका संग दिख गया …

(कैसी उमीदे है ये ? )

रचना : सुजीत कुमार लक्की

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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