इक रात की बात !

अब नींद झपकियों से परे हो रहा था,
आँखों में आकुलता सी छा रही थी,
बोरी सी भर के जिंदगी को ले चली,
फरॉटा गाड़ी सांय सांय करते हुए !
सड़क काली, आसमान भी डरावना सा,
चाक चौबंद मुस्कुराते, दुधिया बल्बों के खंभे !
सड़के जैसे जाल थी, एक दूसरे के ऊपर लिपटे !
और उनपर बनाये गए अवरोध रह रह के,
क्षणिक उन्घाइयों को तोड़ते हुए जा रहे !
रात के पहरों की गिनती कुछ शेष थी,
फिर गोदामनुमो कमरों की खाट पर,
निकलती है जिंदगी बोरियों से बाहर,
जहाँ अन्न के दानो को बिखेरा जाता हर तरफ,
और पानी के फव्वारे से बुझा दी जाती तृष्णा !
फिर कुछ पल की ख़ामोशी स्तब्ध रात की बात,
नींदे आगोश में ले लेती थोरी जिंदगी,
रात मीठी मुस्कान में चुपचाप , धीमी सी कहती,
बोरियों में भर वापस जिंदगी को ,
वो फरॉटा गाड़ी धुएँ उड़ाती आती होगी ! !
Random Thoughts :: (महानगर की रातें – व्याकुलता, अनवरत भागदौर का पर्याय )
Lucky

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

View all posts by Sujit Kumar Lucky →

5 Comments on “इक रात की बात !”

  1. bahut khoobsurat rachna hai bhaavnaon ki abhivyakti achcha laga pahli bar aapke blog par aakar silsila ab chalta rahega.jud rahi hoon aapke blog se.apne blog par bhi aamantrit kar rahi hoon.

Comments are closed.