अब कौन डगर मुझे चैन मिले !

अब कौन डगर मुझे चैन मिले !
किस पथ जाऊ बस रैन मिले !

सूखे रूखे पतझर से,
झुकते थकते डाली पर ,
अब खुशियों की कोई कुसुम खिले !

अब कौन डगर मुझे चैन मिले !

कोई सखा सवेरे होता था,
निश्चल मन कुछ कह लेता था,
अब खमोशी की साजिश से,
किसी धीमे धीमे ख्वाहिश से,
किसी ओर नजाने कहाँ चले !

अब कौन डगर मुझे चैन मिले !

बिखरे सवाल की कश्ती सी !
दूर जल रही एक बस्ती सी !
अँधियारों पर चढ रही मस्ती सी !

बस आकुल मन को एक रोग मिले !
अब कौन डगर मुझे चैन मिले !

रचना : सुजीत कुमार लक्की



About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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